"देश बदल रहा है लेकिन किसान आपनी बदहाली को रो रहा है,आखिर क्यों?"A Short Blog By Nitesh Rathor

देश के हालातो पर कुछ लिखने की अभिलाषा रखने वाले या तो पैसे से दबाए जाते हैं या धमकियों से! कांग्रेस के समय भी लगभग यही होता था और आज भी कुछ ऐसा ही है तो बीते 3 अरसो में क्या बदला? 
किसान वही है जो पहले भी क़र्ज़ तले दबा हुआ था,आज भी है! अपने परिवार का पालन पोषण न कर पाने की स्थिति में इस देश का गरीब किसान सीधे आत्महत्या का रास्ता चुनता है!
ऐसा क्या कारण है कि किसान निरन्तर खुदखुशी कर रहे हैं और न सरकारे कुछ कर पा रही हैं! अलबत्ता हालात ये है कि एक वर्ष में कितने किसान आत्महत्या करते हैं इसका सीधा आकंड़ा भी सरकार नही दे पाती!
आज़ादी के बाद जय जवान जय किसान के नारे लगे तो ईस देश के गरीब मध्यवर्गीय किसान को लगा कि अब उसका भाग्य बदल जाएगा लेकिन उस समय के बात किसानो के लिए कोई भी सरकार कुछ नही कर पाई और न ही कोई ठोस कदम उठा पाई! आज 70 सालो बाद भी आज़ाद हिंदुस्तान में इस देश का गरीब और विवश किसान जब आत्महत्या/ख़ुदकुशी करता है तब न तो सत्ता के मदान्ध उसकी सुध लेते है और दूसरी और अफसरशाह तो होते ही तानाशाही के लिए हैं!
तो क्या समझा जाए देश बदल रहा है या अपनी बदहाली को रो रहा है क्योंकि पिछले वर्ष में किसानो की आत्महत्या से जुडी रिपोर्ट आई तो न मीडिया ने इसे एक्सप्लेन किया और न ही बड़े डिज़ाइनर पत्रकारो ने.

दूसरी ओर मुम्बई में जस्टिन बीबर का शो हुआ.एक-एक टिकट ₹75000 में बिका...जी हाँ आपने सही पढा! ₹75000 और कुल मिलाकर बीबर भारत से लगभग 100 करोड ले गया! ये उस देश के कहानी है जहाँ के अनेक नागरिको को बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी नसीब नही होती। शायद बीबर के शो की चकाचोंध के बीच किसानो और गरीब मध्यमवर्गीय लोगो का दर्द जानने वाला कोई नही है!

तो अब सवाल यह कि आखिर किसानो के अच्छे दिन कब आएँगे? कौन लाएगा उनके अच्छे दिन?

यह मेरा पहला ब्लॉग है...जो कुछ भी मुझे लगा वो मैंने लिखा!
आप  इस ब्लॉग से सहमत अथवा असहमत हो सकते है....
धन्यवाद!

जय हिन्द....




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